रविवार, 25 नवंबर 2012

" अद्रश्य ड़ोर"








उसके  और मेरे बींच वो क्या है  जो हम दोनों को जोडती  है ...
एक अद्रश्य डोर है  जो  मजबूती से हमे जकड़े  हुए है ....
वो इसे प्यार नहीं कहता ---
पर यह मेरे प्यार का  एहसास है---  
मैं उसे बेहद प्यार करती हूँ  ---
मैं  इस एहसास को क्या नाम दूँ  ...
समझ नहीं पाती  हूँ ...
वो कहते है न---- ' दिल को दिल से राह होती  है---'
जब भी वो अचानक मेरे ख्यालो की खिड़की खोल कर झांकता  है ...
तो मैं  तन्मयता से उसे  निहारती हूँ --
तब सोचती हूँ की यह क्या है ? जो हमे एक दुसरे से जोड़े हुए है --?
मैं इसे प्यार का नाम देती हूँ --
तब वो दूर खड़ा इसे 'इनकार' का नाम  देकर मानो अपना पल्ला झाड लेता है -- 
 क्यों वो इस 'लौ ' को पहचानता नहीं ----?
या पहचानता तो है पर मानता नहीं ..?
पर इतना जरुर है मेरे बढ़ते कदम उसके इनकार के मोहताज नहीं .......
दर्शन 'दर्शी '

सोमवार, 3 सितंबर 2012

समुंदर का मोती







वो समुंदर का मोती था ...सिप उसका घर था ..
बाहरी  दुनियाँ से वो अनजान था .....
अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...
कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,
मस्त मौला बना वो गुनगुनाता रहता था ...
दोस्तों के छिपे खंजर से वो अनजान था ..

एक दिन उसने दोस्तों का असली रूप देखा ..
दिल टूट गया उसका ..
एक भूचाल -सा आ गया उसके जीवन में ..
वो अंदर तक तिडक गया ...
फिर भी वो शांत रहा ...
शांति से निकल गया दूर बहुत दूर ...
इस स्वार्थी दुनिया से परे ...
अपनी छोटी -सी दुनियां में ...
जहाँ वो आज खुश है ...पर -----
"दिल पर लगी चोट कभी -कभी हरी हो  जाती है ..
खून बहने लगता है ...कराहटे निकलने लगती है ..."



 

बुधवार, 27 जून 2012

मोहब्बत...









किसी ने मुझसे पूछा ------

"क्या आपको किसी से मोहब्बत है ?"
मैनें कहा ----"हाँ "
"किस से ??? 
मैंने कहा ----

"मुझे मुहब्बत है 'आंसूओ' से .... 
जो किसी की याद में बहते है ----

मुझे मोहब्बत है 'दर्द' से ...
जब किसी के दिल में उठता है --- 

मुझे मोहब्बत है 'जख्मों' से ....
जब कोई पत्थर- दिल देता है ----

मुझे मोहब्बत है 'सज़ा' से ...
जब कोई बा - वफ़ा भोगता है ----

मुझे मोहब्बत है 'आह' से ...
जब किसी दुखी दिल से निकलती है ---

मुझे मोहब्बत उन सब चीजो से है ...
जिससे मोहब्बत का इतिहास लिखा गया ....!





शुक्रवार, 22 जून 2012

जिन्दगी का तीसरा पहर








 जिन्दगी के इस तीसरे पहर में ---
जब मुझे तुमसे प्यार होता है ?
तो महसूस होता है मानो जलजला आ गया हो ?
और मुसलाधार बारिश उसे शांत कर रही हो ?
मेरा स म्पूर्ण व्यक्तित्व मानो निखर गया हो ?
मेरे जीवन का सपना जैसे साकार हो गया हो ....?

जब मेरी गुदाज़  बांहों में तुम्हारा जिस्म  आता हैं 
तो यु लगता है मानो मृग को कस्तूरी का भान  हुआ हो 
और वो कुलांचें भरता हुआ इधर -उधर दौड़ता फिर रहा हो  
मानो कस्तुरी की चाह में कुछ  खोजता फिर रहा हो ..?

जब तेरे जलते हुए होंठ मेरे प्यासे होठों को  छूते है 
जब तेरा  अस्तित्व मेरे समूचे व्यक्तित्व को निगलता है 
तब रगों में दौड़ने वाला रक्त अमृत बन जाता है  
तब मदहोशी का यह अमृत मैं घूंट -घूंट पीती हूँ ..?

तब प्यासी लता बन मै तेरे तने से लिपट जाती हूँ 
और तुम मुझे अपनी बांहों में समेट लेते हो 
तब मेरी अनन्त  की प्यास बुझने लगती है 
और मैं तुम्हारी बांहों में दम तोड़ देती हूँ --

तब मेरा नया जनम होता है 
एक बार फिर से -----
तेरे सहचर्य का सुख भोगने के लिए ---- ?

   

शुक्रवार, 15 जून 2012

मैं चाँद हूँ ...









मैं चाँद हूँ , जो रात को आती हूँ ....
तुम सूरज हो ..जब थक कर सो जाते हो ...

मैं मेध हूँ , जो बारिश लेकर आती हूँ ....
तुम तपन हो ..तब अपनी प्यास पूछते हो ....

मैं वीणा हूँ , तेरे नाम का गीत गाती हूँ ..
तुम पवन हो .. बस गुनगुना कर चले जाते हो ...

मैं सांस हूँ , तेरे दिल में धडकती हूँ ...
तुम पत्थर हो..यु ही ठुकराकर चले जाते हो ....





बुधवार, 13 जून 2012

किताबों के पन्नें









किताबों के पन्नें पलट के सोचती हूँ ------
यू जिन्दगी पलट जाए तो क्या बात हैं ----
तमन्ना जो पूरी हो ख़्वाबों में ,
हकीकत बन जाए तो क्या बात हैं ----
लोग तो मतलब के लिए ढूंढते हैं मुझे ,
बिना मतलब कोई आए तो क्या बात हैं ----
कत्ल करके तो सब ले जाएगे दिल मेरा ,
कोई लुभाकर ले जाए तो क्या बात हैं ----
जिन्दा रहने तक तो ख़ुशी दूंगी सबको ,.
किसी को मेरी मौत से ख़ुशी मिल जाए तो क्या बात हैं ---- !




रविवार, 10 जून 2012

जब इश्क तुम्हे हो जाएगा ..!












इस दिल की लगी को तुम तब पहचानोगे ?
जब ' इश्क 'तुम्हे हो जाएगा 
तुम मेरी तरह बन जाओगे 
जब प्यार का बादल बरसेगा 
तुम मेरी तरह तर जाओगे 
    जब इश्क तुम्हे हो जाएगा ..! 
  तुम मेरी तरह बन जाओगे ..!


जब किरणों में ठंडक होगी !
जब भंवरो में गुंजन होगी !
जब फूलो पे बहारे होगी !
जब नदियो में लहरे होगी !
तब इश्क तुम्हे हो जाएगा ! 
तुम मेरी तरह बन जाओगे ! 




तुम बादल बन जाना --
मैं मेधा बन बरसुंगी --
तुम पवन बन जाना --
मैं झोंका बन जाउंगी --
तुम मोसम बन जाना --
मैं ऋतू बन आउंगी --
तुम मयूर बन जाना --
मैं कोयल बन गाऊँगी --
तुम सागर बन जाना --
मैं नदी बन मिल जाउंगी --
तुम याद बन जाना --
मैं सीने से लग जाउंगी --
जब तुम्हे इश्क हो जाएगा 
तुम मेरी तरह बन जाओगे !
     



वो इश्क जो दुनिया को भुला दे !
वो इश्क जो नहरों को खुदवा दे !
वो इश्क जो पहाडो को कटवा दे ! 
वो  इश्क जो फूलो को खिला दे ! 
वो इश्क  जो खुदा से मिला दे !
जब इ श्क तुम्हे हो जाएगा !
तुम मेरी तरह बन जाओगे ! 




इस दिल की लगी को तुम तब पहचानोगे 
जब इश्क तुम्हे हो जाएगा  !
तुम मेरी तरह बन जाओगे ...! 




सोमवार, 4 जून 2012

जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनायें


आज मेरे परम मित्र श्री हरी शर्माजी का जनम दिन हैं उन्हें ढेरो शुभकामनाए --











उगता हुआ सूरज दुआ दे आपको, 

खिलता हुआ फूल खुश्बू दे आपको, 

हम तो कुछ देने के काबिल नही है, 

देने वाला हज़ार खुशियाँ दे आपको!...... 



एक दुआ माँगते है हम अपने भगवान से, 
चाहते है आपकी खुशी पूरे ईमान से, 
सारी हसरतें पूरी हो आपकी -----
और आप मुस्कुराएँ दिलो जान से..........! 

पूरे हो जाए हर अरमान आपके ....
कदमो में हो हर ख़ुशी आपके ...
जब आप मांगे आसमा का तारा ...
तो मिल जाए सारा आसमा आपको .....!

दुआ हैं ये हमारी हम मंदिर में सर झुकाए... 
आपसे हमेशा दूर रहे गम के साए ..
अगर आपकी राहों मे कभी अंधेरा आए, 
तो रोशनी के लिए'दिया' खुद हम जलाए ......!


फूल खिलते रहें ज़िंदगी की राह में..... 
हँसी चमकती रहे आपकी निगाह में.....
कदम- कदम पर मिले खुशी की बाहर आपको.... 
दिल देता है यही दुआ बार-बार आपको....

जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनायें .....










शुक्रवार, 25 मई 2012

गुनगुनाती सुबह ....



सर्दियों की एक गुनगुनाती सुबह 



सर्दियों की एक गुनगुनाती सुबह में ....
एक टुकड़ा धुप जब मेरे आँगन में उतर आई ..
तो लगा, मेरी ठहरी हुई जिन्दगी में जैसे --
दबे पाँऊ झूमती हुई बयार  आ गई ...

मैं आज बहुत खुश हूँ ---
बाद -मुद्दत उनका सन्देश जो आया  ---
जो तक सुप्तावस्था थी मेरी ---
जैसे आज उसमें जान आ गई --

वो भी मुझसे प्यार करते हैं ??? 
जैसे जड़ -चेतना में मानो प्राण -प्रवाह आ गई !
मन के हर कोने  से ख़ुशी फूटने लगी अब ---
जैसे सूखे रेगिस्तान में चाहत की बरसात आ गई ---

तिनके - तिनके में समेटे थे उनकी यादों के पल ---
आज अचानक उन बीहड़ों में बहार  आ गई ...
मेरी जिन्दगी के हर पन्ने पर नाम हैं उसका 'दर्शी' 
वो लफ्ज़ चलने लगे उनमें  रवानगी आ गई .....!!!!


गुरुवार, 24 मई 2012

प्यार और दिल्लगी *****

..



चाहते ,प्यार, मस्ती  और  दिल्लगी 
अब ये  सब बाते गुजरे जमाने की लगती  
हमें कौन चाहेगा ..?
अब तो यह बातें झूठे फसाने की हैं ..!

 वो रूठना ,वो मनाना वो खिलखिलाना 
अब तो इन चीजों का नहीं कोई ठिकाना ..!


वो गलियों से गुजरना 
वो लड़कों का पीछे आना 
तिरछी निगाहों से उन्हें तकना 
फिर खुद ही शरमा जाना ...
अब कहाँ हैं वो बिजलियाँ गिराना 
अब कहाँ हैं  वो सब रूठना मनाना.....?

लटों को लहराकर बालों को झटकना 
फिर अदा से उन्हें जुड़े में फसाना 
पलकों की चिलमन से किसी को गिराना  
कभी निगाहों से किसी को सजदा करना 
अब कहाँ हैं वो अँखियो का लड़ाना ... 
कभी हंसना कभी खिलखिलाना .....
अब कहाँ हैं  वो सब रूठना मनाना ......? 











वो जलती दुपहरियां में कॉलेज को जाना
हमें देख लडको का सिटी बजाना 
गुस्से से नकली गुस्सा दिखाना 
फिर अपने ही अहम पर खुद मर जाना  
कभी किसी का समोसा खा जाना  
कभी किसी का प्रेम -पत्र  दिखाना  
कभी किसी की हवा को निकालना  
 कभी  भागकर साइकिल पर उड़ना 
वो मौजे -बहारे वो खिलखिलाना ..
अब कहाँ हैं वो रूठना मनाना .....?

पापा से बहाने बनाकर फिर पैसे  ऐठना 
चुपके से सिनेमा जाकर पिक्चर देखना 
भाभी की चम्मच बनकर गोलगप्पे खाना 
फिर मिर्ची का ठसका और आँखों का बहना 
 भैय्या से शाम को आइसक्रीम मंगाना   
कहाँ हैं वो बचपन वो हँसना- हँसाना 
वो कसमें -वादे वो खुशियों का खजाना 
अब कहाँ हैं वो रूठना मनाना .....?













आज  सबकुछ हैं पर वो साथ नहीं ?
साथी तो बहुत हैं पर वो बात नहीं ?

न वो प्यार न वो चाहतें ...
न वो हंसी न वो ठाहकें...

अब नहीं रही वो सुहानी जिन्दगी ...?
न कालेज का जमाना न खिलखिलाना  ...?
न कागज की नाव न बारिश का बरसना ...?
न दादी की कहानी न परियो का फसाना ..?
न सुबह की चिंता न शाम का ठिकाना ...?
न चाँद की चाहत न तितलियों का  दीवाना ..?
न खुशियों की बहार न हंसने का बहाना ...?
कहाँ गुम हो गया वो बचपन सुहाना ....?
वो वादे -बहारे वो अपना चहचहाना .......!!!









* कहाँ गुम हो गया वो बचपन का जमाना  *   



शुक्रवार, 4 मई 2012

मधुमास....

















पतझड़  को मधुमास  बनाती सुने वीराने में गाती ....

स्वर्ग ह्र्दय से दूर कहाँ था जो तेरा आश्रय पा जाती .....!

हंसते तो खिंल जाती कलियाँ पग -पग पर झडती फुलझड़ियाँ ...

  ये उदास अनजानी राहें बन जाती वृन्दावन गालियाँ ..!

मिल जाती मंजिल बांहों में धुल जाता अमृत चाहों में ..

हो जाता हर समय सुहाना साथ तेरा जो पा जाती ...!

एक नया संसार  बसाती एक नया इतिहास  रचाती ..

उदाहरण बन जाता मेरा जीवन जो तेरा सामप्य पा जाती ....!



काश, साथ तेरा जो पा जाती ????









शनिवार, 28 अप्रैल 2012

तुम ऐसे तो न थे...








तुझे चाह था टूटकर मैनें ----
हर घडी ,हर पल ....
तुझे महसूस किया था मैनें ----
दिल के पास ,बहुत पास ...
आज भी हैं --
दिल में ..
तेरे प्यार का एहसास ...
तुझसे यह उम्मीद तो नहीं थी यारा !
यु अकेला छोड़ जाएगा ...
दिल मायूस हैं मेरा --
जुबान खामोश हैं ...
आँखों से बहते आंसू ...
यही शिकायत  करते हैं ...
तुम ऐसे तो नहीं थे दिलबर !
तुम ऐसे तो न थे !!!!!!!!!!!!!!!!!

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

कहानी " मोहभंग "

.







"क्या आप मुझे जानते हैं " ?
"नहीं "?
"क्या मैं आपको  जानती हूँ "?
"पता नहीं " उसने कहा |
"फिर ?"
"आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ " उसने कहा |
"क्यों " मैने पूछा  |
"बस यू ही" 
 अजीब आदमी हैं, दोस्ती ऐसे मांग रहा हैं..जैसे परचुने की दूकान पर नमक खरीद रहा हो..दोस्ती नहीं हुई कोई वस्तु हो गई हो की दाम दो और लो ? जैसे मैं उधार ही बैठी हूँ दोस्ती करने को ..' ऊंह..हूँ' .. मैने सोचा --मैं ऐसे नेट प्रेमियों को अच्छी तरह से जानती हूँ जो लडकियों को देखकर लार टपकाते रहते हैं ..मुझे ऐसे मंजनू  बिलकुल पसंद नहीं ???
  
    मैं २३ साल की एक खुबसुरत लडकी हूँ ..ऍम.बी.ऐ.( f ) की स्टुडेंट हूँ ..अक्सर नेट पर अपना प्रोजेक्ट बनाती रहती  हूँ ..कभी -कभी चेटिंग भी कर लेती हूँ..सिर्फ अपने दोस्तों से जिनको मैं जानती हूँ .जो मेरे साथ पढ़ते हैं, ..अनजान लोगो को मुंह नही लगाती ?

उस दिन 'उसका 'अचानक से आया रिक्वेस्ट मैं भूल चुकी थी --पर शायद वो नहीं भुला था | २-३ दिन बाद उसने फिर रिक्वेस्ट भेज दी --मैने फिर टाल दिया ,पर ज्यादा दिन मैं उसे नही टाल सकी --मुझे उसको एक्सेप्ट करना ही पड़ा --

धीरे -धीरे मैं  उससे चेटिंग करने लगी --वह बहुत दिलचस्प इंसान था --उसकी बाते मुझे बहुत अच्छी लगती थी --उससे बात करके मैं 'फ्रेश' हो जाया करती थी | वह बहुत अजीब आदमी था ,दोस्तों पर जान  देता था --जिंदादिल था ! रोतो को हंसा दे ,उसमें वो हुनर था .|.उसको अपने दोस्तों की कई कविताए मुंह जवानी याद थी --जिन्हे वो अक्सर मुझे सुनाया करता था --कभी-कभी मैं बोर हो जाती थी, पर उससे कुछ नहीं कहती  --कभी -कभी वो थर्ड क्लास बाते करता था जो मुझे पसंद नहीं थी-- लेकिन मेरे मना करने पर वो बंद भी कर देता था --उसकी यही अदा मुझे पसंद थी ...| और मैं उसपर मरती थी ?
वो दोस्तों का दीवाना था ..मेरा नहीं ? मैं; जिस पर सारा जहाँ फ़िदा था --मेरी एक झलक देखने को लोग उतावले रहते थे --? मुझसे दोस्ती करने को कई लडके कतार में खड़े रहते थे --? पर मैं किसी को भाव नही देती थी --मैं तो सिर्फ उसकी दीवानी थी --लेकिन, उसको मेरी परवाह ही नही थी --वह  तो बस बातो का राजा था !

कभी -कभी लगता था की क्या उसने मुझसे सिर्फ बातो के लिए ही दोस्ती की हैं ? या अपना टाइम -पास करने के लिए ? तब मन बहुत उदास हो जाता था ,कई बार मैं उससे नाराज हो जाती --फोन करना बंद कर देती --चेटिंग नहीं करती, उसको ताने देती,झगड़ा करती; तब वो परेशांन  हो जाता ! माफ़ी मांगता! आगे से ऐसा नहीं होगा कहता; मैं अक्सर उसको माफ़ कर देती क्योकि मै खुद उसके बगैर रह नही पाती थी | लेकिन वो अपनी आदत से मजबूर था --कुछ दिन ठीक चलता फिर वही हरकते शुरू हो जाती जो मुझे पसंद  नहीं थी |

वो एक सरकारी संस्था में नौकरी करता था ..बहुत व्यस्त रहता था ..मैने उसको तस्वीरों में देखा था --ठीक - ठाक ही लगता था --न बहुत सुंदर न भद्दा --उसके बारे में ज्यादा जानती नही थी --वैसे मुझे भी परवाह नही थी --मेरी सगाई हो चुकी थी --कुछ दिनों बाद  मेरी शादी होने वाली थी --मेरे होने वाले पति बहुत अच्छे थे -- मैं उनसे संतुष्ट थी ..वो मुझे बहुत प्यार करते थे ..मेरी हर बात मनते थे ..
पर अचानक इसके आने से सब गड़बड़ हो गई --शायद मैं  उससे प्यार करने लगी थी,पर वो मुझसे प्यार नहीं करता था ? जब भी मैं उससे पूछती --तो वो बहाने बनाने लग जाता था---"प्यार क्या होता हैं ?" वह अक्सर पूछता था? और मैं निढाल- सी कुछ कह नहीं पाती थी --कैसे उसको अपनी भावनाए समझाऊ --शायद वो समझकर  भी नासमझ बनता था--

    पर यह पक्का था की मैं उससे प्यार करने लगी थी ! मुझे हरदम उसकी याद आती थी-- भूख खत्म हो गई थी --जिस दिन उसका फोन नहीं आता तो मन बैचेन रहता था, पर वो मस्त रहता --मैं गुस्सा होती और वो हंसता --मुझे कविताए सुनाता हमेशा कहता --"लाइफ को इन्जाय करो " पर उसके बगैर मेरी लाइफ सूनी थी मैं कैसे उसे समझाती ? मैं सम्पूर्ण रूप से उसके मोहपाश में बंध चुकी थी ----?

हम कभी मिले नहीं थे --न हमने कभी एक दुसरे को देखा था --वो असल में कैसा होगा ! मैने कभी सोचा ही  नही था ! वो कैसा भी  हो ; मैरे मन ने उसे स्वीकार कर लिया था --हम काफी करीब आ चुके थे ! बहुत सी बाते जो सिर्फ पति -पत्नी ही करते हैं हम एक दुसरे से अक्सर करते रहते थे --कई बार उसकी कुछ अनगर्ल बाते मुझे पसंद नही आती थी पर अनमने भाव से मैं सुनती थी -- और वो समझता था की मुझे ऐसी ही बाते पसंद हैं -- वो दुने जोश से करता था -- कई बार मना भी कर देती थी जिसे वो एक अच्छे बच्चे की तरह मान भी जाता था-- वादा करता था की आगे से कभी नही करूँगा ?पर जल्दी ही भूल जाता था -- फिर वही बातो का लम्बा सिलसिला -- कविताओं का न खत्म होने वाला राग ! पर मुझे उसकी हर चीज़ पसंद थी---?

मैं चाहती थी की वो रोमांटिक बाते करे ; मुझसे प्यार भरी मिठ्ठी बाते करे ? पर शायद वो यह करना जानता ही नहीं था --ज्यादा जोर देती तो वो मुझसे बात करना ही छोड़ देता , तब न फोन करता न एस. ऍम. एस. करता --अक्सर कह्ता-- "व्यस्त हूँ ?"

जीवन यू ही गुजरता रहा ---मै जहां भी जाती उसको अपने सामने पाती --अपने होने की एक -एक पल की खबर उसको देती--पर मानो उसे मेरे प्यार में रूचि थी ही नहीं --जब उसकी इच्छा होती बात करता --जब इच्छा  होती मेसेज करता; मेरी भावनाओ की उसको कोई कद्र ही नही थी? कई बार सोचा उसे छोड़ दू --फिर डर जाती --कैसे रहूंगी उसके  बगैर --?

 एक बार तो उसे F.B. से निकलने को कह भी दिया और वो तुरंत तैयार भी हो गया --और निकल भी गया---मानो कुछ  हुआ ही नही हो ? पर लाख कोशिश के बावजूद  भी मैं उसे दिल से निकाल नही सकी --पता नही किस मिटटी का बना हुआ था ? सीने में दिल ही नही था उसके ? यदि था भी तो मेरे लिए धडकता  नही था ?
उसको निकलने का बोल तो दिया ,पर इस गुनाह की सज़ा मैने  ही पाई --उसके न रहने से जो स्थान रिक्त हुआ --वो मुझसे देखा नही गया --मैं विचलित हो गई ---उसको देखे बगैर मैं रह ही नही सकती थी --एक दिन भी निकालना मुश्किल हो गया --आखिर तंग होकर मैने उससे कहा --"प्लीज ,मुझसे बाते करो , मैं पागल हो जाउंगी "? उसने तुरंत जवाब दिया --" I love you"  !मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व खिल गया --आँखों से आंसू बह निकले --ऐसा लगा मानो -कण -कण जीवित हो उठा हो ! वो भी मुझे प्यार करता हैं ? मन मयूर नाच उठा --तन मन में तरंगे दौड़ने लगी --एक सम्पूर्णता से मेरी बगिया खिल उठी ...
   

ऐसे  ही समय दौड़ता रहा --हम बहुत नजदीक आ गए थे -- मै  उससे  शादी करना चाहती थी ,पर वो हमेशा मुझे   टाल  देता था -- एक दिन मैने उससे जबरदस्ती की तो अचानक वह बोला--मैं शादीशुदा हूँ ? एक साथ दो औरतो से प्यार नहीं कर सकता ? " धडाम "--- मैं धरा पर आ गिरी ?

वो मुझसे प्यार नही करता था ?शायद वो अपनी पत्नी से  बहुत प्यार करता था --? उसने सिर्फ मुझसे दोस्ती की थी---सिर्फ दोस्ती ???

उसने कभी मुझसे कोई वादा  नही किया ? न मिलने की कोशिश की --शायद वो बिना देखे मेरे इस अंधे प्यार को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा होगा -- ? कैसे कोई बिना देखे किसी को प्यार कर सकता हैं ?यही सोचता   होगा --पर मैने उसको सच्चे दिल से प्यार किया था ???


आजतक उसको भुला नही पाई हूँ --वह मेरा पहला प्यार था जिसे भुलाना नामुमकिन ही नही असम्भव था --मेरी यही भूल थी की मैने उसको प्यार किया ? और उसकी यह की उसने मुझसे दोस्ती की--पर मैं दोस्ती कर नही सकी ---????

"परछाई के पीछे भागने वाले ओढ़े मुंह गिरते हैं न "

         काश,उस दिन तुम मिले ही नहीं होते ??? 



शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

बेदर्द जमाना......












हर पल मैरे नैना देखे तुझको चारो और !
धुंध  में छिपा हैं अक्स ,खोजू किस और !!  
चाहते बदल गई नफरते हैं चारो और !
इस मतलबी दुनिया में आदमी खोजू किस और !!
आदमी ही आदमी को खा रहा हैं चारो और !
जिस्म बना हैं कब्र ,कब्रस्तान खोजू किस और !! 
'दर्शन' बेदर्द जमाना हैं लोभी चारो और !
किसको पराया समझू मैं, अपना खोजू किस और !! 




मंगलवार, 13 मार्च 2012

प्यार ! प्यार !! प्यार !!!








  प्यार ! प्यार !! प्यार !!! 



"वो एक अलसाई हुई दोपहर थी******** 
मैं  गहरी नींद में******
सौ रही थी **** !
अचानक ****
तुम मेरे पहलु में आ गए ******
मैनें अधखुली आँखों से तुम्हें देखा *****
तुम मुस्कुरा रहे थे ********
मुझे प्यार से देख रहे थे ******
मैनें  जोर से तुम्हें ,
अपनी बांहों मै भींच लिया *******
अधरों से अधर मिले *******
और दिल से दिल ******
मानो, जन्मों की प्यास 'कुछ' ही पल में बुझ गई **** 
और मैं, तुम्हारे सीने से लगकर वापस सौ गई ******! 


शनिवार, 3 मार्च 2012

प्यार की फुलवारी









आज फिर छली गई .....
उसी व्यक्ति के हाथो ....
जिससे हमेशा प्यार करती थी ......!
जिसने कठिन राहों से निकालकर मुझे 
प्यार की फुलवारी में चलना सिखाया ..
आज मुझे कांटो भरे रेगिस्थान मैं छोड़कर  ,
खुद न जाने कहाँ विलीन हो गया .....?
आवाज़ देती हूँ तो --------
दूर र्रर्रर्रर घाटियों में गूंजकर लौट आती हैं ....
कुछ दिखाई नहीं देता ....
चारों और धुंध छाई हुई हैं ....
घुप!अँधेरा सिमटा हुआ हैं ...

"कैसें उसे भूलूं ?????

वो तो पल्ला झाड़कर कब का जा चूका हैं ..
शायद उसको 'मोह' ही नहीं था मुझसे ?
वरना रुक जाता ...????????
अब, मैं प्रीत की मारी जोगन
 नगरी -नगरी घूम रही हूँ ..
किस ढोर -ठिकाना उसका ...
नदियाँ पहाड़ रौंध रहीं हूँ ....
अपने हाथों चमन लुटाकर ,
   आज तमाशा देख रही हूँ ......!



बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

और मैं लौट गई ---








मुझे अब उसकी जिन्दगी से लौट जाना चाहिए ----
क्योकिं अब हमारा समागम संभव नहीं----?
वो मुझे कदापि स्वीकार नहीं करेगा----
मैनें हर तरफ से अपनी 'हार' स्वीकार कर ली हैं----!
तो क्यों मैं मेनका बनकर,
विश्वामित्र की तपस्या भंग करूँ -----???


वो मुझे 'काम ' की देवी समझता हैं----
जिसे  एक दिन काम में ही भस्म हो जाना हैं ---
पर मैं रति -ओ - काम की देवी नहीं हूँ----
मैं प्रेम की मूरत हूँ ----?
मैं प्रेम की भाषा हूँ ----? 
मैं प्रेम की अगन हूँ ----?
मैं प्रेम की लगन हूँ ----?
मैं प्रेम की प्यास हूँ ----?
मैं प्रेम का उपहास हूँ ---?
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ ----!



मैं स्वप्न परी हूँ, नींदों में रमती हूँ -----
मैं प्रेम की जोगन  हूँ, प्रेम नाम जपती हूँ ---- 
मैं फूलों का पराग हूँ , शहद बन धुलती हूँ -----
मैं पैरो का घुंघरू हूँ , छम-- छम बजती हूँ ----
मैं  बाग़ की मेहँदी हूँ, तेरे ख्यालो में रचती हूँ ----
मुझेको  काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ -----!



मैं बार -बार तेरे क़दमों से लिपटती हूँ परछाई बनकर ---
मैं बार -बार तेरी साँसों में समाती हूँ धडकन बनकर ----
मैं बार -बार लौट आती हूँ सागर की लहरें बनकर ----
मैं बार -बार गाई जाती हूँ भंवरों की गुंजन बनकर ----
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओं ----!


मुझे रति -ओ - काम की देवी मत समझ ---
  मैं नीर हूँ तेरी आँखों का ..?
मैं नूर हूँ तेरे चहरे का --?
मैं हर्फ़ हूँ तेरे पन्ने का --?
         मैं सैलाब हूँ तेरी मुहब्बत का --?
        मैं मधुमास हूँ तेरे जीवन का --?
   मैं हर राज हूँ तेरे सिने का --?
   मैं साज़ हूँ तेरी सरगम का --?
मैं प्यास हूँ तेरे लबो का --?
मुझे रति -ओ -काम की देवी न समझ ???
मैं प्यार हूँ, मैं विश्वास हूँ ,मैं चाहत हूँ ????? 





काँटा समझ कर मुझ से न दामन को बचा 
उजड़े हुए चमन की एक यादगार हूँ मैं ....


  

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

पहाड़ो का शहर ..









                                       
                                                    पहाडों पर दूर तक जमी बर्फ
सनसनाती हुई हवाऐ
हड्डियों को कंपकपाती हुई ठंड
पेंड़ो से गिरते पत्ते
 घाटियों में गूंजती आवाजें 
और कल -कल बहती नदी का शोर

तेरी याद दिलाने के लिए काफी था 
जब तेरी तस्वीर उठाकर देखी तो
ओंस की कुछ बूंदे पड़ी थी 
गिला -गिला अजीब -सा नज़ारा था
जैसे अभी रोकर उठी हो
मेरी उन खोई हुई आँखों में
एक पल को उदासी तैर गई








ऐसी वीरान ! ठहरी हुई जिन्दगी तो मैनें कभी नहीं चाही थी
फिर क्यों चला आया मैं यहाँ सबकुछ छोड़कर
पहाड़ों पर मेरा दम निकलता हैं, ऐसी तो बात नहीं
पर यहाँ का सन्नाटा
अकेलापन 
तीर की तरह चलती ठंडी हवाएं  !
मेरे कलेजे को चीरती हैं 






मैं उदास अपने हाथो को जोड़े होटल की बालकनी में खड़ा हूँ
           दूर ~~क्षितिज में हिमालय की चोटियों पे बर्फ चमक रही हैं
मानो किसी के सर पर चांदी का ताज जड़ा हो


और मैं खोज रहा हूँ अपनी गुजरी हुई जिन्दगी
"जहाँ सब मेरे अपने थे "
जहाँ खुशियाँ थी,  खिलखिलाहटे थी,  दोस्त थे, 
-----और तुम थी.

क्यों आ गया मैं इस अजनबी शहर में,
इस पत्थरों के शहर में,
जहाँ चारों और पहाड़ ही पहाड़ हैं
आवाज देता हूँ तो पत्थरों का सीना चीर कर लौट आती हैं


हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
तेरी खनकती हुई हंसी !!!
जैसे मेरे कानों में शहद टपक रहा हो 
अभी बोल उठेगी ---"कहाँ हो, मेरी जान"
"यही हूँ, तुम्हारे पास " मैं कह उठूँगा !


अचानक मेरा चेहरा विदूषक हो उठा
लगा ही नहीं की वो यहाँ नहीं हैं








मैं सहज ही उसकी मुस्कान में बंधा हुआ
उसके बांहों के धेरे में सिमटा हुआ 
   उसके चेहरे की कशिश में लिपटा हुआ 
मदहोश -सा बहा जा रहा हूँ 
काश, तू होती 
इन हसीं वादियों में
हम हाथों में हाथ डाले घूमते- फिरते
तुम मुझ पर बर्फ के गोले मारती
मैं तुम्हें  पकड़ता ..भागता ..चूमता
तुम हंसती हुई भाग खड़ी होती और
मैं तुम्हें प्यार से निहारता रहता
इन ठंडी रातों में
हम मालरोड पर घूमते
ठंडी - ठंडी आइसक्रीम खाते
कभी ठंड से बचने के लिए
सड़कों पर जलते अलावो पर हाथ सकते  
 चर---र्र --र्र  ---र्र-- र्र---र --






अचानक ! किसी गाडी की जोरदार आवाज से तन्द्रा भंग हुई 
मैनें चौंककर देखा ---'तू नहीं थी' 
"अरे कहाँ गई अभी तो यहीं थी 
मैं पागलों की तरह चारों और ढूंढता रहा
"पर वो जा चुकी थी "


और मैं अकेला सुनसान सड़क पर खड़ा  था 
उसका इन्तजार करता हुआ 
मुझे पता हैं --"वो नहीं आएगी"
पराई जो हो गई हैं न वो