सर्दियों की एक गुनगुनाती सुबह
सर्दियों की एक गुनगुनाती सुबह में ....
एक टुकड़ा धुप जब मेरे आँगन में उतर आई ..
तो लगा, मेरी ठहरी हुई जिन्दगी में जैसे --
दबे पाँऊ झूमती हुई बयार आ गई ...
मैं आज बहुत खुश हूँ ---
बाद -मुद्दत उनका सन्देश जो आया ---
जो तक सुप्तावस्था थी मेरी ---
जैसे आज उसमें जान आ गई --
वो भी मुझसे प्यार करते हैं ???
जैसे जड़ -चेतना में मानो प्राण -प्रवाह आ गई !
मन के हर कोने से ख़ुशी फूटने लगी अब ---
जैसे सूखे रेगिस्तान में चाहत की बरसात आ गई ---
तिनके - तिनके में समेटे थे उनकी यादों के पल ---
आज अचानक उन बीहड़ों में बहार आ गई ...
मेरी जिन्दगी के हर पन्ने पर नाम हैं उसका 'दर्शी'
वो लफ्ज़ चलने लगे उनमें रवानगी आ गई .....!!!!
मैंने अभी कुछ दिन पहले एक टुकड़ा असमान की बात की थी... अब एक टुकड़ा धुप...:) अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंजब पन्ने पे उनका नाम हो, तो फिर कहना क्या.. है न दर्शन जी:)
kabhi khud pe kabhi halat par rona aaya ...
जवाब देंहटाएंwo samjhe nahi isi baat pat rona aaya ...