मत पूछो ऐ दुनियां वालों कैसे मेरी किस्मत फूटी !
अपनों ने ही मेरे बनकर मेरे प्यार की दुनियां लुटी !!"
उनके जाने से मेरे दिल का वो कोना खाली हैं
जहाँ सजाई थी मैने कभी तेरी इक तस्वीर
तंग गलियां !सुनी दीवारे ! जंगल में पड़ी इक मज़ार !
यादो का झुरमुट हैं या गुज़रे दिनों की बहार
तेरे रहने से इस बे-जान हंसी ने ,
ठहाको का रूप लिया था कभी ,
जमी हुई ओंस ने तब --
पिधलना शुरू कर दिया था --
बर्फ की मानिंद इस जमी हुई रूह को
अब, तेरे आगोश का इन्तजार रहेगा ----?
भटकती रही हूँ दर -ब -दर
तेरे कदमों के निशाँ ढूंढती हुई
इस भीड़ में अब कोई मुझे पुकारेगा नहीं---?
कोई गलती नहीं थी फिर भी सज़ा पा रही हूँ मैं
तुझसे दिल लगाया क्या यही जुर्म हुआ मुझसे ?
न मैं समझ सकी, न तुम बता सके --
जिन्दगी के ये फलसफे ..उलझकर रह गए
उलझे हुए तारो को सुलझा सकी नहीं कभी --
इस उलझन में हम कब उलझ गए पता ही नहीं ???
मेरी पेंटिंग --दर्शन !
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