बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

और मैं लौट गई ---








मुझे अब उसकी जिन्दगी से लौट जाना चाहिए ----
क्योकिं अब हमारा समागम संभव नहीं----?
वो मुझे कदापि स्वीकार नहीं करेगा----
मैनें हर तरफ से अपनी 'हार' स्वीकार कर ली हैं----!
तो क्यों मैं मेनका बनकर,
विश्वामित्र की तपस्या भंग करूँ -----???


वो मुझे 'काम ' की देवी समझता हैं----
जिसे  एक दिन काम में ही भस्म हो जाना हैं ---
पर मैं रति -ओ - काम की देवी नहीं हूँ----
मैं प्रेम की मूरत हूँ ----?
मैं प्रेम की भाषा हूँ ----? 
मैं प्रेम की अगन हूँ ----?
मैं प्रेम की लगन हूँ ----?
मैं प्रेम की प्यास हूँ ----?
मैं प्रेम का उपहास हूँ ---?
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ ----!



मैं स्वप्न परी हूँ, नींदों में रमती हूँ -----
मैं प्रेम की जोगन  हूँ, प्रेम नाम जपती हूँ ---- 
मैं फूलों का पराग हूँ , शहद बन धुलती हूँ -----
मैं पैरो का घुंघरू हूँ , छम-- छम बजती हूँ ----
मैं  बाग़ की मेहँदी हूँ, तेरे ख्यालो में रचती हूँ ----
मुझेको  काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ -----!



मैं बार -बार तेरे क़दमों से लिपटती हूँ परछाई बनकर ---
मैं बार -बार तेरी साँसों में समाती हूँ धडकन बनकर ----
मैं बार -बार लौट आती हूँ सागर की लहरें बनकर ----
मैं बार -बार गाई जाती हूँ भंवरों की गुंजन बनकर ----
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओं ----!


मुझे रति -ओ - काम की देवी मत समझ ---
  मैं नीर हूँ तेरी आँखों का ..?
मैं नूर हूँ तेरे चहरे का --?
मैं हर्फ़ हूँ तेरे पन्ने का --?
         मैं सैलाब हूँ तेरी मुहब्बत का --?
        मैं मधुमास हूँ तेरे जीवन का --?
   मैं हर राज हूँ तेरे सिने का --?
   मैं साज़ हूँ तेरी सरगम का --?
मैं प्यास हूँ तेरे लबो का --?
मुझे रति -ओ -काम की देवी न समझ ???
मैं प्यार हूँ, मैं विश्वास हूँ ,मैं चाहत हूँ ????? 





काँटा समझ कर मुझ से न दामन को बचा 
उजड़े हुए चमन की एक यादगार हूँ मैं ....


  

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