शुक्रवार, 22 जून 2012

जिन्दगी का तीसरा पहर








 जिन्दगी के इस तीसरे पहर में ---
जब मुझे तुमसे प्यार होता है ?
तो महसूस होता है मानो जलजला आ गया हो ?
और मुसलाधार बारिश उसे शांत कर रही हो ?
मेरा स म्पूर्ण व्यक्तित्व मानो निखर गया हो ?
मेरे जीवन का सपना जैसे साकार हो गया हो ....?

जब मेरी गुदाज़  बांहों में तुम्हारा जिस्म  आता हैं 
तो यु लगता है मानो मृग को कस्तूरी का भान  हुआ हो 
और वो कुलांचें भरता हुआ इधर -उधर दौड़ता फिर रहा हो  
मानो कस्तुरी की चाह में कुछ  खोजता फिर रहा हो ..?

जब तेरे जलते हुए होंठ मेरे प्यासे होठों को  छूते है 
जब तेरा  अस्तित्व मेरे समूचे व्यक्तित्व को निगलता है 
तब रगों में दौड़ने वाला रक्त अमृत बन जाता है  
तब मदहोशी का यह अमृत मैं घूंट -घूंट पीती हूँ ..?

तब प्यासी लता बन मै तेरे तने से लिपट जाती हूँ 
और तुम मुझे अपनी बांहों में समेट लेते हो 
तब मेरी अनन्त  की प्यास बुझने लगती है 
और मैं तुम्हारी बांहों में दम तोड़ देती हूँ --

तब मेरा नया जनम होता है 
एक बार फिर से -----
तेरे सहचर्य का सुख भोगने के लिए ---- ?

   

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